संत गाडगे बाबा महाराज 19वीं शताब्दी के एक महान इंसान थे और उनकी सामाजिक सेवाओं के लिए जाना जाता था। एक संत जो असहाय और गरीबों के लिए काम करते थे।
उनका वास्तविक नाम देवीदास डेबुजी था। महाराज का जन्म 23 फरवरी 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के अँजनगाँव सुरजी तालुका के शेड्गाओ ग्राम में एक धोबी परिवार में हुआ था। गाडगे महाराज एक घूमते फिरते सामाजिक शिक्षक थे। वे पैरो में फटी हुई चप्पल और सिर पर मिट्टी का कटोरा ढककर पैदल ही यात्रा किया करते थे। और यही उनकी पहचान थी। देवुजी, झिंगराजि और सखुबाई का एकमात्र पुत्र थे। झिंगराजि की मृत्यु के बाद वह और उनकी मां अपने मामा के साथ रहने चले गए। कुछ वर्षों के भीतर वह एक उत्कृष्ट किसान, चरवाह, गायक और तैराक बन गए ।
वह कुंताबाई से शादी कर चुके थे और उनके चार बच्चे थे। जानवरों से प्रेम, उन्होंने बचपन से पशु बलि का विरोध किया यहां तक कि जब उसके दोस्तों, रिश्तेदारों और उनकी जाति के लोगों ने उन्हें पशुओं की बलि करने के लिए मजबूर किया, तो उन्होंने जानवरों को मारने के बजाय उनके क्रोध का सामना करना पसन्द किया।
उनके पास अपनी कोई संपत्ति नहीं थी और उन्होंने अपने गांव के खेत में वेतन मजदूरी के रूप में काम किया। एक दिन वह खेत पर थे और पक्षियों को अनाज से दूर रखने की कोशिश कर रहे थे । एक साधु जो गुजर रहा था, पूछा क्या गादजी बाबा अनाज के मालिक हैं? इस सवाल ने बाबा को बदल दिया।
साधु की इस टिप्पणी के बाद, गाडगे बाबा ने सामुदायिक-साझाकरण के मूल्य को महसूस किया और अपने पूरे जीवन इसका अभ्यास किया। सामुदायिक सेवा ही बाबा की शिक्षाओं का आधार बन गई। वे एक समाज सुधारक और घुमक्कड भिक्षुक थे जो महाराष्ट्र में सामाजिक विकास करने हेतु साप्ताहिक उत्सव का आयोजन करते थे।
उन्होंने उस समय भारतीय ग्रामीण भागो का काफी सुधार किया और आज भी उनके कार्यो से कई राजनैतिक दल और सामाजिक संस्थान प्रेरणा ले रहे है।
उनका अभ्यास और निम्नलिखित का उपदेश:
भूखे को खाना दें
जरूरतमंदों को आश्रय दें
पर्यावरण बचाएं
जब वे किसी गाँव में प्रवेश करते थे तो गाडगे महाराज तुरंत ही गटर और रास्तो को साफ़ करने लगते। और काम खत्म होने के बाद वे खुद लोगो को गाँव के साफ़ होने की बधाई भी देते थे।
गाँव के लोग उन्हें पैसे भी देते थे और बाबाजी उन पैसो का उपयोग सामाजिक विकास और समाज का शारीरिक विकास करने में लगाते। लोगो से मिले हुए पैसो से महाराज गाँवो में स्कूल, धर्मशाला, अस्पताल और जानवरो के निवास स्थान बनवाते थे।
गाँवो की सफाई करने के बाद शाम में वे कीर्तन का आयोजन भी करते थे और अपने कीर्तनों के माध्यम से जन-जन तक लोकोपकार और समाज कल्याण का प्रसार करते थे। अपने कीर्तनों के समय वे लोगो को अन्धविश्वास की भावनाओ के विरुद्ध शिक्षित करते थे। अपने कीर्तनों में वे संत कबीर के दोहो का भी उपयोग करते थे।
संत गाडगे महाराज लोगो को जानवरो पर अत्याचार करने से रोकते थे और वे समाज में चल रही जातिभेद और रंगभेद की भावना को नही मानते थे और लोगो के इसके खिलाफ वे जागरूक करते थे। और समाज में वे शराबबंदी करवाना चाहते थे।
गाडगे महाराज लोगो को कठिन परिश्रम, साधारण जीवन और परोपकार की भावना का पाठ पढ़ाते थे और हमेशा जरूरतमंदों की सहायता करने को कहते थे। उन्होंने अपनी पत्नी और अपने बच्चों को भी इसी राह पर चलने को कहा।
महाराज कई बार आध्यात्मिक गुरु मैहर बाबा से भी मिल चुके थे। मैहर बाबा ने भी संत गाडगे महाराज को उनके पसंदीदा संतो में से एक बताया। महाराज ने भी मैहर बाबा को पंढरपुर में आमंत्रित किया और 6 नवंबर 1954 को हज़ारो लोगो ने एकसाथ मैहर बाबा और महाराज के दर्शन लिये।
मुत्यु और महानता:
20 दिसंबर 1956 को, इस कर्मयोगी ने अपने नश्वर शरीर को छोड़ दिया। लेकिन आज भी उनके अनुयायियों ने उनकी शिक्षाओं का पालन किया है, उनके सभी संस्थान अच्छी तरह से कार्य कर रहे हैं।
उन्हें सम्मान देते हुए महाराष्ट्र सरकार ने 2000-01 में “संत गाडगेबाबा ग्राम स्वच्छता अभियान” की शुरुवात की। और जो ग्रामवासी अपने गाँवो को स्वच्छ रखते है उन्हें यह पुरस्कार दिया जाता है।
महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सुधारको में से वे एक है। वे एक ऐसे संत थे जो लोगो की समस्याओ को समझते थे और गरीबो और जरूरतमंदों के लिये काम करते थे।
भारत सरकार ने भी उनके सम्मान में कई पुरस्कार जारी किये। भारत सरकार ने उनके सम्मान में स्वच्छता और जल के लिए एक राष्ट्रीय पुरस्कार की स्थापना की।
इतना ही नही बल्कि अमरावती यूनिवर्सिटी का नाम भी उन्ही के नाम पर रखा गया है। संत गाडगे महाराज भारतीय इतिहास के एक महान संत थे।
संत गाडगे बाबा सच्चे निष्काम कर्मयोगी थे। महाराष्ट्र के कोने-कोने में अनेक धर्मशालाएँ, गौशालाएँ, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों का उन्होंने निर्माण कराया। यह सब उन्होंने भीख माँग-माँगकर बनावाया किंतु अपने सारे जीवन में इस महापुरुष ने अपने लिए एक कुटिया तक नहीं बनवाई।
भारत सरकार ने संत गाडगे बाबा की याद में 20 दिसंबर 1998 को 42 वीं पुण्यतिथि पर एक डाक टिकट जारी किया।
ऐसे महान समाजसेवी, समाज सुधारक एवं स्वच्छ भारत के जनक संत गाडगे जी महाराज को शत शत नमन !!!
ABDM, NEEMUCH
अखिल भारतीय धोबी महासंघ, नीमच भी संत गाडगे बाबा के सिद्धन्तो पर कार्य कर रही है।
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प्रथम सभा गाँधी वाटिका नीमच |
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ABDM TEAM NEEMUCH |
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सवच्छ अभियान,धोबी घाट नीमच |
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प्रथम गाडगे बाबा जयंती नीमच |
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ABDM नवीन कार्यकरणी सदस्य 2017-18 |
आप सभी के सहयोग से आज अखिल भारतीय धोबी महासंघ जिला नीमच सामाजिक स्तर पर हर संभव कार्य करता है वह समाज को ऊंचा ले जाने में हमेशा तत्पर रहता है
जय गाड़गे बाबा!!!
जीवन के लिए बहुउपयोगी है गाडगे बाबा का दशसूत्री संदेश
ReplyDeleteमॅनेजमेन्ट गुरु संत गाडगे बाबा का समाज उत्थान एवं समाज की कुरीतियों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने मानवता की भलाई के लिए कई संदेश दिए हैं।
उनका दशसूत्री संदेश, जो हमें ईश्वर के करीब ले जाने की एक कड़ी है, आइए जानें...
1. भूखे को अन्न (रोटी) दो।
2. प्यासे को पानी पिलाओ।
3. वस्त्रहीन लोगों को वस्त्र दो।
4. गरीब बच्चों की शिक्षा में मदद करो, हर गरीब को शिक्षा देने में योगदान दो।
5. बेघर लोगों को आसरा दो।
6. अंधे, विकलांग, बीमार व्यक्ति की सहायता करो।
7. बेरोजगारों को रोजगार दो।
8. पशु-पक्षी, मूक प्राणियों को अभयदान दो।
9. गरीब, कमजोर लोगों के बच्चों की शादी में मदद करो।
10. दु:खी और निराश लोगों को हिम्मत दो।
यही सच्चा धर्म है और यही सच्ची ईश्वर भक्ति है।